प्रत्येक व्यक्ति के अंदर ढेर सारी अविद्या है , जो उसके दुखों का कारण है । यही अविद्या व्यक्ति को अपने मन तथा इंद्रियों पर नियंत्रण करने नहीं देती। इस अविद्या के कारण व्यक्ति सारा दिन संसार की चीजों में ही उलझा रहता है। ईश्वर को गौण समझता है और सांसारिक सुख को मुख्य मानता है । इसीलिए उसका मन संसार में भटकता रहता है ।
जब कोई व्यक्ति ईश्वर की उपासना में बैठता है , तब उसका मन ईश्वर में नहीं लगता , या बहुत कम लगता है । इसका कारण है कि उसको ईश्वर में रुचि नहीं है , अथवा बहुत कम है । संसार में रुचि बहुत अधिक है , इसलिए सारा दिन उसका मन संसार में लगा रहता है। *संसार की वस्तुओं में उसे कहीं राग और कहीं द्वेष चलता ही रहता है । जब तक व्यक्ति राग द्वेष को दूर नहीं करेगा, तब तक उसका मन ईश्वर में नहीं लगेगा ।*
संसार की वस्तुओं में जो आपको राग और द्वेष है, उसे कम करें ; तथा ईश्वर में रुचि बढ़ाएं । ऐसा करने से संसार से आपको वैराग्य होगा ; तथा ईश्वर में रुचि बढ़ने से मन टिकेगा।
*ईश्वर का मूल्य सबसे अधिक है , उसे कम समझना ; तथा संसार का मूल्य ईश्वर से कम है, परंतु इसे ईश्वर से अधिक मूल्यवान समझना , बस यही अविद्या है . - *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*