01 Jun
01Jun

🌷🍃 ओ३म् सादर नमस्ते जी 🌷🍃

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🌷🍃


दिनांक  - - २४ अप्रैल  २०१९

दिन  - - बुधवार 

तिथि  - - पंचमी 

नक्षत्र  - - मूल 

पक्ष  - - कृष्ण 

माह  - - वैशाख 

ऋतु - - बसंत 

सूर्य  - - उत्तरायण 

सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२०

कलयुगाब्द  - - ५१२०

विक्रम संवत्  - - २०७६

शक संवत्  - - १९४१

दयानंदाब्द  - - १९६


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🌷फलित―ज्योतिष🌷


🌷भारतवर्ष को अवनति के गढ़े में धकेलने वाला दूसरा बहुत बड़ा कारण है-फलित ज्योतिष।यह फलित ज्योतिष कई भागों में विभक्त है,यथा मुहूर्त्त,नवग्रह पूजा और दिशाशूल।


       वैदिक साहित्य में ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण स्थान है।ज्योतिष को वेद के षड़अङ्गों में से एक माना गया है।वेदों में बहुत से ऐसे मन्त्र विद्यमान हैं जिन्हें ज्योतिष की सहायता के बिना समझा ही नहीं जा सकता,परन्तु यह सारा महत्व गणित ज्योतिष का है,फलित का नहीं।


यहाँ गणित और फलित ज्योतिष का अन्तर स्पष्ट करना आवश्यक है।गणित ज्योतिष वह विद्या है,जिसके द्वारा सूर्य,चन्द्र,नक्षत्र आदि से प्रकृति में होने वाली घटनाओं का यथार्थ ज्ञान हो।जैसे सूर्यग्रहण कब होगा,चन्द्रग्रहण कब होगा?दिन घटना कब आरम्भ होता है और बढ़ना कब आरम्भ होता है।गणित ज्योतिष से हम नक्षत्रों की स्थिति जानकर ऐतिहासिक घटनाओं का विज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं।उदाहरण के रुप में जिस समय महाभारत का युद्ध हुआ था,उस समय ग्रह एक युति में थे।पाश्चात्य ज्योतिर्विद बेली के अनुसार ईसा से ३१०२ वर्ष पूर्व २० फरवरी को २ बजकर २७ मिनट और ३० सेकण्ड़ पर ग्रह एक युति में थे,अतः महाभारत का समय ३१०२+२०१९=५१२१ वर्ष होगा।यह है ज्योतिष के अनुसार महाभारत का समय और परम्परा के अनुसार भी यही ठीक है।इस गणित ज्योतिष को आर्यसमाज मानता है।


फलित ज्योतिष क्या है?यदि जन्मलग्न में राहु हो और छठे स्थान में चन्द्रमा हो तो बालक की मृत्यु हो जाती है।यदि जन्मलग्न में शनि हो और छठे स्थान में चन्द्रमा हो तथा सातवें स्थान में मंगल हो तो बालक का पिता मर जाता है।जन्मलग्न में तीसरे स्थान में भौम हो तो जितने भाई हों सभी का नाश हो जाता है।इसी प्रकार यदि रात को बच्चा उत्पन्न होगा तो अमुक प्रकार का होगा।रविवार को होगा तो अमुक प्रकार का होगा।किसी कन्या का विवाह अमुक समय में हो गया तो वह विधवा हो जायेगी,आदि-आदि।

यह है फलित ज्योतिष।यह सर्वथा मिथ्या(झूठ) है।यह लोगों को ठगने का पाखण्ड़ है।


फलित ज्योतिष ने भारत के पतन एवं अकल्याण की प्रभूता सामग्री प्रस्तुत की है।यहाँ हम एक ऐतिहासिक घटना लिखने का लोभ संवरण नहीं कर सकते।


महमूद गजनवी ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किये।अन्तिम बार सन् १०२४ ई० में उसने काठियावाड़ के प्रसिद्ध मन्दिर सोमनाथ पर आक्रमण किया।सोमनाथ की रक्षा के लिए एक बहुत बड़ी सेना तैयार खड़ी थी,परन्तु परिणाम क्या हुआ,यह महर्षि दयानन्द के शब्दों में पढ़िये-


पोप,पूजारी पुरश्चरण,स्तुति-प्रार्थना करते थे कि 'हे महादेव! इस म्लेच्छ को तू मार डाल,हमारी रक्षा कर।'और वे अपने राजाओं को समझाते थे कि'आप निश्चिन्त रहिये।महादेवजी भैरव अथवा वीरभद्र को भेज देंगे।वे सब म्लेच्छों को मार डालेगें वा अन्धा कर देंगे।अभी हमारा देवता प्रसिद्ध होता है।हनुमान,दुर्गा और भैरव ने स्वप्न दिया है कि हम सब काम कर देंगे।'

वे बेचारे भोले राजा और क्षत्रीय पोपों के बहकाने से विश्वास में रहे।कितने ही ज्योतिषी पोपों ने कहा कि अभी तुम्हारी चढ़ाई का मुहूर्त्त नहीं है।एक ने आठवाँ चन्द्रमा बतलाया,दूसरे ने योगिनी सामने दिखाई,इत्यादि बहकावट में रहे;जब म्लेच्छों की फौज ने आकर घेर लिया तब दुर्दशा से भागे।कितने ही पोप,पुजारी और उनके चेले पकड़े गये।पूजारियों ने हाथ जोड़कर यह भी कहा कि तीन करोड़ रुपया ले लो,मन्दिर और मूर्ति मत तोड़ो।मुसलमानों ने कहा कि हम 'बुतपरस्त' नहीं,किन्तु 'बुतशिकन' हैं,अर्थात् मूर्त्तिपूजक नहीं,किन्तु मूर्त्तिभञ्जक हैं।जाके झट मन्दिर तोड़ दिया। जब ऊपर की छत टूटी तो चुम्बक पाषाण पृथक होने से मूर्त्ति गिर पड़ी।जब मूर्त्ति तोड़ी तो सुनते हैं अठारह करोड़ के रत्न निकले।जब पूजारी और पोपों पर कोड़े पड़े तब रोने लगे।कहा कि कोष बताओ,मार के मारे झट बतला दिया।तब सब कोष लूट-मार कर पोप और उनके चेलों को 'गुलाम',भिखारी  बना पीसना पिसवाया,घास खुदवाया,मल-मूत्रादि उठवाया और चने खाने को दिये।हाय! क्यों पत्थर की पूजा कर सत्यानाश को प्राप्त हुए।क्यों परमेश्वर की भक्ति नहीं की जो म्लेच्छों के दाँत तोड़ डालते और अपनी विजय करते।देखो !जितनी मूर्त्तियाँ पूजी हैं,उतनी शूरवीरों की पूजा करते तो भी कितनी रक्षा होती।पूजारियों ने इन पाषाणों की इतनी भक्ति की,परन्तु एक भी मूर्त्ति उन शत्रुओं के सिर पर उड़के न लगी।जो किसी एक शूरवीर पुरुष की मूर्त्ति के सदृश सेवा करते तो वह अपने सेवकों को यथाशक्ति बचाता और उन शत्रुओं को मारता।"

--सत्यार्थप्रकाश ,एकादशसमुल्लासः


आज कोई भी कार्य किया जाए-मुण्डन हो,यज्ञोपवीत हो,विवाह हो,दुकान का उद्घाटन हो,गृहप्रवेश हो या भवन का शिलान्यास हो-प्रत्येक बात में मुहूर्त्त देखा जाता है।ग्रह-नक्षत्र और कुण्डलियाँ मिलाई जाती हैं,परन्तु फिर भी व्यापार में घाटे हो जाते हैं,मकान बनने में भी विलम्ब हो जाता है,स्त्रियाँ विधवा हो जाती हैं।यह कोई कपोलकल्पना नहीं है।लीजिए,प्रमाण प्रस्तुत करता हूँ--


महाराज मुंञ्ज ने ज्योतिषी के कहने पर अपने मन्त्री वत्सराज को भोज को मारने का आदेश दिया।उनकी बात सुनकर मन्त्री ने कहा-


त्रैलोक्यनाथो रामोऽसि वसिष्ठो ब्रह्मपुत्रकः।

तेन राज्याभिषेके तु मुहूर्त्तः कथितोऽभवत्।।

तन्मुहूर्त्तेन रामोऽपि वनं नीतोऽवनीं विना।

सीतापहारोऽ प्यभवद्विरिञ्चिवचनं वृथा।।

जातः कोऽयं नृपश्रेष्ठ किंजिज्ज्ञ उदरम्भरिः।

यदुक्त्या मन्मथाकारं कुमारं हन्तुमिच्छसि।।-(बल्लाल पण्डितविरचित भोजप्रबन्ध २०-२२)


ब्रह्मा के पुत्र वसिष्ठजी ने त्रिलोकीनाथ श्रीराम के राज्याभिषेक का मुहूर्त्त बताया था,उसी मुहूर्त्त में राम को राज्य त्यागकर वन में जाना पड़ा और वहाँ सीता भी चुरा ली गयी,वसिष्ठजी का वचन असत्य ही सिद्ध हुआ,फिर इस पेटू पण्डित के कहने से आप कामदेव के समान सुन्दर भोज को क्यों मारना चाहते हो?


इसी तथ्य को सूरदास जी ने यूँ वर्णित किया है-

कर्मगत टारे नाहीं टरे।

गुरु वसिष्ठ से पण्डित ग्यानी रुचि-रुचि लगन धरी।

सीति हरन मरन दशरथ को विपत में विपत परी।।


मुहूर्त्त क्या है? महर्षि मनु के अनुसार-

निमेषा दश चाष्टौ च काष्टा त्रिंशत्तु ताः कला।

त्रिंशत्कला मुहूर्त्तः स्यादहोरात्रं तु तावतः।।-(मनु० १/६४)


पलक झपकने का नाम निमेष है।१८ निमेष की एक काष्ठा,तीस काष्ठा की एक कला,तीस कला का एक मुहूर्त्त और तीस मुहूर्त्त का एक दिन-रात होता है।


इस प्रकार मुहूर्त्त तो काल की संज्ञा है।क्या यह किसी के ऊपर चढ़ सकता है,या किसी को खा सकता है,अथवा किसी को भस्म कर सकता है?कदापि नहीं।


यदि मुहूर्त्त देखना कोई लाभदायक बात है तो जिन लोगों में (ईसाई,मुसलमान आदि) मुहूर्त्त नहीं देखा जाता,उन्हें हानि होनी चाहिये,परन्तु यहाँ तो हिसाब ही उल्टा है।हिन्दुओं में जहाँ लगन और मुहूर्त्त देखकर विवाह किये जाते हैं,वहाँ विधवाओं की संख्या अन्य देशों की अपेक्षा बहुत अधिक है।मुहूर्त्त देखने से सन्तान अधिक योग्य उत्पन्न होती हो,पति-पत्नि में अधिक प्रेम रहता हो-ऐसी बात भी दृष्टिगोचर नहीं होती।

ऋषि सन्तान! भारत माता के नौनिहालो ! वास्तविकता को समझो और पाखण्ड़ से बचो।


किसी भी कार्य को आरम्भ करने पर नवग्रहपूजा को टकापन्थी पण्डित अनिवार्य बताते हैं।नवग्रहपूजा में भी सबसे पूर्व गणेश का पूजन होता है।एक मिट्टी की डली पर कलावे के दो-तीन चक्कर लगा दिये जाते हैं और उस पर धूप,दीप,नैवेद्य आदि चढ़वाया जाता है।यह भी पण्डित के खाने कमाने का ढ़ोंग है।बार-बार टका चढ़वाकर ये लोग पर्याप्त राशि इकट्ठी कर लेते हैं।जड़ मिट्टी का ढेला तो अपनी रक्षा भी नहीं कर सकता,दूसरे के विघ्न क्या दूर करेगा?


एक बार एक पण्डित जी किसी जाट यजमान के यहाँ पहुंच गये।जब पण्डित जी ने पहली बार टका रखवाया तो जाटजी ने रख दिया।दूसरी बार फिर टका रखने के लिए कहा तो जाट ने सोचा,पता नहीं,पण्डित जी कितनी बार टका रखवाएँगे,अतः पण्डितजी का ध्यान हटते ही जाटजी ने गणेश की मूर्त्ति को उठाया और उसे पीछे की और फेंककर भोलेपन से पूछा,"पण्डितजी ! टका कहाँ रक्खूँ?" पण्डितजी ने कहा-"यहाँ रख,इस गणेश पर।" जाटजी ने कहा-"गणेश कहाँ है,वह तो अपना टका लेते ही चला गया था।" 

यदि सभी व्यक्तियों में इस प्रकार की भावनाएँ जाग्रत हो जाएँ तो ये अवैदिक प्रथाएँ समाप्त हो सकती हैं।


नवग्रहपूजा पाखण्ड है।ज्योतिषियों द्वारा स्वीकृत नवग्रह ये हैं-सूर्य,चन्द्रमा,मंगल,बुध,बृहस्पति,शुक्र,शनि,राहु और केतु।राहु और केतु वस्तुतः ग्रह नहीं हैं।ये दोंनो चन्द्रमा के मार्ग की कल्पित ग्रन्थियाँ हैं।शेष सात में भी सूर्य और चन्द्रमा ग्रह नहीं हैं।

कोश में ग्रह का अर्थ इस प्रकार दिया गया है-"सूर्य की परिक्रमा करने वाला तारा।"

इस परिभाषा के अनुसार सूर्य नक्षत्र सिद्ध होता है।चन्द्रमा प्रकाशशून्य है और सूर्य की परिक्रमा न करके पृथिवी की परिक्रमा करता है,अतः यह भी ग्रह नहीं है।इस प्रकार ग्रह कुल पाँच ही रह जाते हैं।जब ग्रह पाँच ही हैं तब नवग्रहपूजा कैसी?


ज्योतिषियों ने सभी ग्रहों के लिए वेदमन्त्र खोज निकाले हैं।यहाँ सभी की समीक्षा का तो समय नहीं है,परन्तु पाखण्ड़ के भण्ड़ाफोड़ के लिए दो-तीन मन्त्रों पर विचार करेंगे।


शनि के लिए जो मन्त्र पढ़ा जाता है,वह इस प्रकार है-


शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये।शँयोरभि स्रवन्तु नः।।-(यजु० ३६/१२)


इस मन्त्र में 'शनि' पद ही नहीं है।उव्वट और महीधर ने भी इस मन्त्र का भाष्य करते हुए इसका शनिग्रह-परक अर्थ नहीं किया है।मन्त्र का ठीक अर्थ इस प्रकार है-

सबका प्रकाशक,सबको आनन्द देने वाला और सर्वव्यापक ईश्वर मनोवाञ्छित आनन्द के लिए और पूर्णानन्द की प्राप्ति के लिए हमारे लिए कल्याणकारी हो।वह प्रभु हम पर सब और से सुखों की वृष्टि करे।


अब केतु का मन्त्र देखिये-

केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे।समुषद्भिरजायथाः।।-(यजु० २९/३७)


इस मन्त्र में 'केतु' शब्द पड़ा हुआ है,इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है,परन्तु इसका 'केतुग्रह' के साथ निश्चितरुपेण कोई सम्बन्ध नहीं है।उव्वट ने 'केतु' का अर्थ 'प्रज्ञान' किया है और महीधर ने 'ज्ञान' अर्थ किया है।मन्त्र का ठीक अर्थ यह होगा-


हे विद्वान पुरुष ! अज्ञानियों को ज्ञान प्रदान करते हुए और धनहीन मनुष्यों को धन प्रदान करते हुए तू अज्ञान और दरिद्रय का नाश करने वाले तेजस्वी पुरुषों के साथ उत्तम प्रकार से प्रसिद्ध हो।


"उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि।"-(यजु० १५/५४)


इस मन्त्र को पाखण्डियों ने बुध का मन्त्र बना दिया।इस मन्त्र में 'बुध' शब्द ही नहीं है।यहाँ 'उदबुध्यस्व' क्रियापद है।इसका अर्थ है-उदबुद्ध हो।बुध का इस मन्त्र से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है।


जिन मन्त्रों का पाठ नवग्रहपूजा में होता है जब वे मन्त्र ही नवग्रहपूजा के नहीं हैं तो यह पूजा और फल सब कुछ व्यर्थ हुआ,अतः बुद्धिमानों को इस पाखण्ड से बचना चाहिये।


ग्रह किसी के ऊपर चढ़ जाते हैं,यह भी मिथ्या है।दो व्यक्ति लो,जिनमें एक के ग्रह (ज्योतिषियों के अनुसार) क्रूर हों और दूसरे के सौम्य।इन दोनों को ज्येष्ठ मास में जब ऊपर से सूर्य अग्नि बरसाता हो और नीचे से भूमि आग उगलती हो,तब यमुना की रेती पर नंगे पैर चलाओ।जिस पर ग्रह क्रूर हैं उसके पैर और शरीर जलने चाहियें और जिसके सौम्य हैं उसके न जलने चाहिए ।

क्या ऐसा कभी हो सकता है?कदापि नहीं।


फलित-ज्योतिष का एक अंग दिशाशूल भी है।दिशाशूल का अर्थ है कि विषेश दिनो में विषेश दिशा की यात्रा करना उत्तम है और अमुक दिनों में अमुक दिशाओं में जाना हानिकारक है।पाखण्डियों ने अद्भुत गप्पें गढ़ी हुई हैं,जैसे बुधवार को स्त्री को ससुराल नहीं भेजना चाहिये।इसी प्रकार यदि वधू को शुक्रवार को ससुराल भेज दिया जाए तो गर्भपात हो जाता है।यह सब भी वहम और पाखण्ड ही है।


एक बार ऐसा हुआ कि स्वयं पण्डितजी को अपनी लड़की को शुक्रवार को ससुराल भेजना पड़ा।लोगों ने कहा पण्डितजी आप तो शुक्रवार को ससुराल भेजने के लिए मना करते थे फिर आपने कैसे भेज दिया?

पण्डितजी ने कहा,"वसिष्ठ गोत्रवालों को कोई दोष नहीं होता।" पाठकगण! यदि वसिष्ठ गोत्रवालों को दोष नहीं होता  तो औरों को क्या दोष हो सकता है?सावधान! इन ज्योतिषियों की चालों से बचो।


यदि विषेश दिन में दिशाविषेश में नहीं जाना चाहिये तो उस दिन उस दिशा में जाने वाली सभी मोटरें,कारें,ट्रक,रेलगाड़ियाँ और वायुयान बन्द कर देने चाहियें,परन्तु हम देखते हैं कि रेलें और मोटरें प्रतिदिन प्रत्येक दिशा में जाती हैं।यदि दिशाशूल का कोई प्रभाव होता तो उस दिन गाडियों की टक्कर होकर सारे यात्रियों की मृत्यु हो जानी चाहिये थी।


ज्योतिषी लोग अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह तो लग्न देख-दाखकर और कुण्डली आदि मिलाकर ही करते हैं,फिर उनकी लड़कियाँ विधवा क्यों हो जाती हैं?ज्योतिषियों के अपने लड़के क्यों मर जाते हैं?इनके लड़के परीक्षाओं में फेल क्यों हो जाते हैं?ये ज्योतिष पृथिवी में गड़े धन को जानकर स्वयं उसे क्यों नहीं निकाल लेते?व्यापार में तेजी-मन्दी को जानकर स्वयं करोड़पति क्यों नहीं हो जाते?


यदि यह फलित-ज्योतिष सच्चा होता तो इन ज्योतिषियों को पटड़ी पर बैठने की आवश्यकता न रहती।यदि इनकी भविष्यवाणियाँ सच्ची होतीं तो इन सबको सी०आई०डी० (गुप्तचर) विभाग में कार्य मिलता अथवा ये चोरों का पता लगाकर और पुलिस को बताकर मालामाल हो जाते।९ फरवरी,१९६५ को पंजाब के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कैरों की निर्मम हत्या की गयी थी।कोई भी ज्योतिषी नहीं बता सका कि कैरों का हत्यारा कौन है?


विभाजन से पूर्व भारतवर्ष में ६०० राजा थे।उन सभी ने ज्योतिषी पाल रखे थे।किसी ज्योतिषी ने अपने महाराज से यह नहीं कहा -"महाराज! सावधान हो जाओ।अपना कोई प्रबन्ध कर लो।यह राज्य आपसे छिनने वाला है।पटेलरुपी राहु आपको ग्रसने वाला है।"

चलो,राजाओं को न बताया तो कोई बात नहीं,उन्होंने अपना भी कुछ प्रबन्ध न किया।करते तो तब जब उन्हें भविष्य का कुछ ज्ञान होता।


आजकल भृगु-संहिता के नाम से भी एक पाखण्ड पनपने लगा है।प्रत्येक भृगु संहिता वाला कहता है कि मेरी संहिता ही प्रामाणिक है,शेष सब मिथ्या है।अतः ये सभी झूठे हैं।


इन फलित ज्योतिष के अन्तर्गत ही हस्तरेखा भी है।यह भी मिथ्या है।अनेक लोग ज्योतिषियों को अपना हाथ दिखाकर अपने को अपने को ठगाते हैं।

आपके हाथ में क्या है?लीजिए एक शिक्षाप्रद घटना पढिए-

एक बार एक युवक महर्षि दयानन्द के पास गया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर कहने लगा -"स्वामी जी!देखिये,मेरे हाथ में क्या है?"स्वामीजी ने उसके हाथ को देखते हुए कहा-"इसमें खून है,मांस है,चर्बी है,चाम है,हड्डियाँ हैं और क्या है?"


हमारे हाथ में क्या है?वेद कहता है-


कृतं में दक्षिणे हस्ते जयो मे सव्य आहितः।

गोजिद् भूयासमश्वजिद् धनञ्जयो हिरण्यजित्।।-(अथर्व० ७/५०/८)


मेरे दायें हाथ में कर्म है और बायें हाथ में विजय है।मैं अपने कर्मों के द्वारा गौ,भूमि,अश्व,धन और स्वर्ण का विजेता बनूँ।


यदि आप रेखाओं के भरोसे ही बैठे रहे तो कुछ नहीं होगा।कर्म द्वारा,प्रबल पुरुषार्थ द्वारा आप सारे संसार का शासन भी कर सकते हैं।अतः कर्म करो।


मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता और विधाता स्वयं है।ज्योतिष के द्वारा आपके भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता।ज्योतिष आपको धन-सम्पत्ति नहीं दे सकते।महर्षि दयानन्द के इन वचनों को सदा स्मरण रखो-"जो धनाढ्य,दरिद्र,प्रजा,राजा,रंक होते हैं,वे अपने कर्मों से होते हैं,ग्रहों से नहीं।"-सत्यार्थप्रकाश ,एकादशसमुल्लासः


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💐🙏 आज का वेद मंत्र 💐🙏


🌷 ओ३म् यं देवासो ऽवथ वाजसातौ यं शूरसाता मरूतो हिते धने । प्रातर्यावाणं रथमिन्द्र सानसिमरिष्यन्तमा रूहेमा स्वस्तये। ( ऋग्वेद १०|६३|१४ )


💐 अर्थ  :-  हे विद्वद् जनो  ! आप अन्नादि की प्राति में, वीर पुरूषों के करने योग्य संग्राम में , हित धन को प्राप्त करने में, कला- कौशल से रक्षा करते हो । वैसे ही ब्राह्ममुहूर्त से ही वायु के समान गतिशील रथ-यान पर चढ़ कर हम परमैश्वर्य को प्राप्त करें ।


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🕉🙏 गाय का दूध धरती का अमृत है । गाय के दूध के सेवन से  गो माता के पालन और रक्षण में निश्चित रूप से बढोतरी होगी ।


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🌷🍃🌷🍃 ओ३म् सुदिनम् 🌷🍃🌷🍃 ओ३म् सुप्रभातम् 🌷🍃🌷🍃 ओ३म् सर्वेभ्यो नमः 


💐🙏💐🙏 कृण्वन्तोविश्मार्यम 💐🙏💐🙏 जय आर्य 💐🙏💐🙏 जय आर्यावर्त 💐🙏💐🙏 जय भारत

आर्य राम किशन शुक्ल

कमैंट्स
* ईमेल वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं किया जाएगा।
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