27 Apr
27Apr


🌷🍃ओ३म् सादर नमस्ते जी 🌷🍃

🌷🍃आपका दिन शुभ हो 🌷🍃


दिनांक  १२ मार्च २०१९

दिन  - - मंगलवार 

तिथि - - षष्ठी 

नक्षत्र  - - कृत्तिका 

पक्ष  - - शुक्ल 

माह  - - फाल्गुन 

ऋतु  - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 

सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,११९

कलयुगाब्द  - - ५११९

विक्रम संवत्  - - २०७५

शक संवत्  - - १९४०

दयानंदाब्द  - - १९६


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       🌷प्राचीन भारत के १३ विश्वविद्यालय, जहां पढ़ने आते थे दुनियाभर के छात्र। तुर्की मुगल आक्रमण ने सब जला दिया । बहुत से हिन्दू मंदिर लुटे गये।

नही तो मेगास्थनीज अलविरुनी इउ एन सांग के ग्रन्थो मे अति समृद्ध भारत के वर्णन है।


वैदिक काल से ही भारत में शिक्षा को बहुत महत्व दिया गया है। इसलिए उस काल से ही गुरुकुल और आश्रमों के रूप में शिक्षा केंद्र खोले जाने लगे थे। वैदिक काल के बाद जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया। भारत की शिक्षा पद्धति भी और ज्यादा पल्लवित होती गई। गुरुकुल और आश्रमों से शुरू हुआ शिक्षा का सफर उन्नति करते हुए विश्वविद्यालयों में तब्दील होता गया। पूरे भारत में प्राचीन काल में १३ बड़े विश्वविद्यालयों या शिक्षण केंद्रों की स्थापना हुई।


८ वी शताब्दी से १२ वी शताब्दी के बीच भारत पूरे विश्व में शिक्षा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध केंद्र था।गणित, ज्योतिष, भूगोल, चिकित्सा विज्ञान के साथ ही अन्य विषयों की शिक्षा देने में भारतीय विश्वविद्यालयों का कोई सानी नहीं था।


हालांकि आजकल अधिकतर लोग सिर्फ दो ही प्राचीन विश्वविद्यालयों के बारे में जानते हैं पहला नालंदा और दूसरी तक्षशिला। ये दोनों ही विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध थे। इसलिए आज भी सामान्यत: लोग इन्हीं के बारे में जानते हैं, लेकिन इनके अलावा भी ग्यारह ऐसे विश्वविद्यालय थे जो उस समय शिक्षा के मंदिर थे। आइए आज जानते हैं प्राचीन विश्वविद्यालयों और उनसे जुड़ी कुछ खास बातों को..


        १ . नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda university)


Nalanda university History in Hindi 

यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। यह विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार के पटना शहर से ८८ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से ११ किलोमीटर में स्थित था। इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज करा देते हैं।


सातवीं शताब्दी में भारत भ्रमण के लिए आए चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी मिलती है। यहां १०,००० छात्रों को पढ़ाने के लिए २,००० शिक्षक थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०- ४७० को प्राप्त है। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवद्र्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे।


इस विश्वविद्यालय की नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था। जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियां स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे।


इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक आदि रखने के लिए खास जगह बनी हुई है। हर मठ के आंगन में एक कुआं बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष और अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे व झीलें भी थी। नालंदा में सैकड़ों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था। जिसमें लाखों पुस्तकें थी।


        २ . तक्षशिला विश्वविद्यालय (Takshashila university)


Takshashila university Story in Hindi 

तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग २७०० साल पहले की गई थी। इस विश्विद्यालय में लगभग १०५०० विद्यार्थी पढ़ाई करते थे। इनमें से कई विद्यार्थी अलग-अलग देशों से ताल्लुुक रखते थे। वहां का अनुशासन बहुत कठोर था। राजाओं के लड़के भी यदि कोई गलती करते तो पीटे जा सकते थे। तक्षशिला राजनीति और शस्त्रविद्या की शिक्षा का विश्वस्तरीय केंद्र थी। वहां के एक शस्त्रविद्यालय में विभिन्न राज्यों के १०३ राजकुमार पढ़ते थे।


आयुर्वेद और विधिशास्त्र के इसमे विशेष विद्यालय थे। कौसलराज प्रसेनजित, मल्ल सरदार बंधुल, लिच्छवि महालि, शल्यक जीवक और लुटेरे अंगुलिमाल के अलावा चाणक्य और पाणिनि जैसे लोग इसी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे। कुछ इतिहासकारों ने बताया है कि तक्षशिला विश्विद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय की तरह भव्य नहीं था। इसमें अलग-अलग छोटे-छोटे गुरुकुल होते थे। इन गुरुकुलों में व्यक्तिगत रूप से विभिन्न विषयों के आचार्य विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे।


       ३ . विक्रमशीला विश्वविद्यालय (Vikramshila university)


Vikramshila university in Hindi 

विक्रमशीला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्म पाल ने की थी। ८ वी शताब्दी से १२ वी शताब्दी के अंंत तक यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था। भारत के वर्तमान नक्शे के अनुसार यह विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर शहर के आसपास रहा होगा।


कहा जाता है कि यह उस समय नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी था। यहां १००० विद्यार्थीयों पर लगभग १०० शिक्षक थे। यह विश्वविद्यालय तंत्र शास्त्र की पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता था। इस विषय का सबसे मशहूर विद्यार्थी अतीसा दीपनकरा था, जो की बाद में तिब्बत जाकर बौद्ध हो गया।


       ४ . वल्लभी विश्वविद्यालय (Vallabhi university)


Vallabhi university History in Hindi 

वल्लभी विश्वविद्यालय सौराष्ट्र (गुजरात) में स्थित था। छटी शताब्दी से लेकर १२ वी शताब्दी तक लगभग ६०० साल इसकी प्रसिद्धि चरम पर थी। चायनीज यात्री ईत- सिंग ने लिखा है कि यह विश्वविद्यालय ७ वी शताब्दी में गुनामति और स्थिरमति नाम की विद्याओं का सबसे मुख्य केंद्र था। यह विश्वविद्यालय धर्म निरपेक्ष विषयों की शिक्षा के लिए भी जाना जाता था। यही कारण था कि इस शिक्षा केंद्र पर पढ़ने के लिए पूरी दुनिया से विद्यार्थी आते थे।


       ५ . उदांत पुरी विश्वविद्यालय (Odantapuri university)


Odantapuri university history in Hindi 

उदांतपुरी विश्वविद्यालय मगध यानी वर्तमान बिहार में स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना पाल वंश के राजाओं ने की थी। आठवी शताब्दी के अंत से १२ वी शताब्दी तक लगभग ४०० सालों तक इसका विकास चरम पर था। इस विश्वविद्यालय में लगभग १२००० विद्यार्थी थे।


         ६. सोमपुरा विश्वविद्यालय (Somapura mahavihara)


Somapura mahavihara History in Hindi 

सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना भी पाल वंश के राजाओं ने की थी। इसे सोमपुरा महाविहार के नाम से पुकारा जाता था। आठवीं शताब्दी से १२ वी शताब्दी के बीच ४०० साल तक यह विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था। यह भव्य विश्वविद्यालय लगभग २७ एकड़ में फैला था। उस समय पूरे

विश्व में बौद्ध धर्म की शिक्षा देने वाला सबसे अच्छा शिक्षा केंद्र था।


          ७. पुष्पगिरी विश्वविद्यालय (Pushpagiri university)


Pushpagiri university History in Hindi 

पुष्पगिरी विश्वविद्यालय वर्तमान भारत के उड़ीसा में स्थित था। इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने की थी। अगले 800 साल तक यानी 11 वी शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय का विकास अपने चरम पर था। इस विश्वविद्यालय का परिसर तीन पहाड़ों ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी पर फैला हुआ था।


नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद ये विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र था। चायनीज यात्री एक्ज्युन जेंग ने इसे बौद्ध शिक्षा का सबसे प्राचीन केंद्र माना। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस विश्ववविद्यालय की स्थापना राजा अशोक ने करवाई थी।


अन्य विश्वविद्यालय (Other Universities)

प्राचीन भारत में इन विश्वविद्यालयों के अलावा जितने भी अन्य विश्वविद्यालय थे। उनकी शिक्षा प्रणाली भी इन्हीं विश्वविद्यालयों से प्रभावित थी। इतिहास में मिले वर्णन के अनुसार शिक्षा और शिक्षा केंद्रों की स्थापना को सबसे ज्यादा बढ़ावा पाल वंश के शासको ने दिया।


          ८. जगददला, पश्चिम बंगाल में (पाल राजाओं के समय से भारत में अरबों के आने तक


       ९. नागार्जुनकोंडा, आंध्र प्रदेश में।


      १० . वाराणसी उत्तर प्रदेश में (आठवीं सदी से आधुनिक काल तक)


       ११ . कांचीपुरम, तमिलनाडु में


       १२. मणिखेत, कर्नाटक


      १३. शारदा पीठ, कश्मीर में।


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💐🙏आज का वेद मंत्र 💐🙏


🌷ओ३म् एतावानस्य महिमातो ज्यायंश्च पूरूष:।पदोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि। ।( यजुर्वेद ३१|३ )


💐भावार्थ  :- यह सब सूर्य, चन्द्र आदि लोक लोकान्तररूप चराचर जितना भी जगत् है, वह चित्र विचित्र रचना के अनुमान से ईश्वर के महत्व को सिद्ध करके  --  उत्पत्ति, स्थिति, और प्रलयरूप से ह्रास और वृद्धि आदि से भी परमेश्वर के चतुर्थ अंश में स्थित है, इसके चतुर्थ अंश की भी अवधि को भी प्राप्त नहीं होता। इस सामर्थ्य के तीन अंश अपने अविनाशी मोक्ष रूप में सदा वर्तमान रहते हैं। इस कथन से उसकी अनन्तता का नाश नहीं होता।


💐 भाष्यसार  :- सृष्टि विद्या का उपदेश  --- यह दृश्य और अदृश्य ब्रह्माण्डरूप जगत् इस परमेश्वर की महिमा है अर्थात सूर्य, चन्द्र लोक - लोकान्तर चराचर जितना भी जगत् है वह चित्र- विचित्र रचना से परिपूर्ण होने से ईश्वर का अनुमान कराता है, उसकी महिमा को बताता है।परमात्मा इस जगत् में परिपूर्ण है तथा अत्यंत महान् है। सब पृथ्वी आदि भूत इस जगदीशवर के एक पाद है अर्थात चतुर्थ अंश में स्थित है। वस्तुत यह जगत् परमात्मा के चतुर्थ अंश  के बराबर भी नहीं है । परमेश्वर के तीन पाद अर्थात तीन अंश अपने अविनाशी मोक्ष रूप में सदा वर्तमान रहते हैं। 


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🕉🙏ज्ञान रहित भक्ति अंधविश्वास है 

🕉🙏भक्ति रहित ज्ञान नास्तिकता है 

व्हाट्सएप से साभार

🌷🍃🌷🍃ओ३म् सुदिनम् 🌷🍃🌷🍃ओ३म् सुप्रभातम् 🌷🍃🌷🍃ओ३म् सर्वेभ्यो नमः 


💐🙏💐🙏कृण्वन्तोविश्मार्यम 💐🙏💐🙏जय आर्यावर्त 💐🙏💐🙏जय भारत

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