वेद में मूर्ति पूजा का विधान नहीं है। वेद तो घोषणापूर्ण कहते है -- *न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद्यशः* | ( यजुर्वेद ३२ -३ ) अर्थात जिसका नाम महान यशवाला है उस परमात्मा की कोई मूर्ति , तुलना , प्रतिकृति , प्रतिनिधि नहीं है। *प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस देश में मूर्तिपूजा कब प्रचलित हुई और किसने चलाई ?*

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मूर्ति पूजा कहाँ से चली ?* *उत्तर- जैनियों से* *जैनियों ने कहाँ से चलाई ?* *उत्तर- अपनी मूर्खता से* *पुराण कुरान बाईबल की तरह जैनियों के ग्रन्थों में भी गपोडबाजी ज्यादा है ।*

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