*सच्चे आर्य महापुरुष आदि शंकराचार्य का सच -*
*आदि शंकराचार्य बचपन से ही आत्मज्ञान के धनी थे। उन्होंने देखा, समझा, और जाना कि यहां तो मनुष्य यह जानने की कोशिश, प्रयत्न ही नहीं करते हैं कि इस संसार में हम सब प्राणियों को और सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी आदि को किसने बनाया है, क्यों बनाया है, कोई तो ऐसा कारण होगा। क्या- हमारा इन सभी गूढ़ रहस्यों को जानने समझने का फर्ज नहीं बनता है?!!*
*जिस परमात्मा ने हमें, तरह-तरह की रंग-बिरंगी वनस्पति दी है, उसके -ज्ञान, गुण, कर्म, स्वभाव को जानकर, हमें उसका धन्यवाद करना चाहिए।*
*आदि शंकराचार्य, ऐसा देखकर हैरान हो गये, कि यहाँ तो अधंविश्वास के कारण, जड़ पदार्थ व्यापरिक पूजा के चक्कर में, सबका दिमाग जड़ ही होता जा रहा है, तब :-*
*आदि शंकराचार्य जी ने चार धाम - द्वारिका,बद्रीनाथ,जगन्नाथपुरी, और रामेश्वरम की स्थापना कराई, ताकि एक बड़े स्थान पर, सब मानव जन समुदाय, एक साथ बैठकर, परमात्मा के सत्य ज्ञान पर चर्चा, आत्म-साक्षात्कार, आत्मज्ञान मंथन और धन्यवाद स्वरूप उसकी अराधना कर सकें।*
*आदि शंकराचार्य का जन्म संवत 788 ई० मे केरल प्रदेश के कलाडी चेर गाँव में हुआ। उनकी मृत्यु 32 वर्ष की आयु मे संवत 820 ई० मे केदारनाथ मे हुई।*
*आर्य महापुरुष आदि शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक "परापूजा" के माध्यम से पाषाण मूर्तिपूजा को गलत माना है। और लिखा है, :-*
*तीर्थेषु पशु यज्ञेषु काष्ठे पाषाण-मृण्मये।*
*प्रतिमायां मनो येषां ते नरा मूढचेतसः।।*
*स्वगृहे पायसं त्यक्त्वा भिक्षामृच्छति दुर्मति:।*
*शिलामृत् दारु चित्रेषु देवता बुद्धि कल्पिता।।*
*आदि शंकराचार्य ने कहा है, लकड़ी, पत्थर, मिटटी आदि की मूर्ति में जिनका मन है, वे मनुष्य मूढ़ मति (पशु यज्ञेषु) वाले होते हैं।*
*अपने घर की खीर (अपने अन्दर के परमात्मा ) को छोड़कर, पत्थर, मिटटी, लकड़ी आदि में देवताओं की कल्पना करता है, वह मूर्तिपूजा भीख मांगने के समान है।*
*आदि शंकराचार्य की 32 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु के पश्चात, पौराणिक व्यापारियों ने धूर्त वाममार्गी बनाम जैनियों और अघोरी तांत्रिकों से प्रेरित होकर अपने स्वार्थों के लिए, नई-नई पौराणिक कथा-कहानियां जोड़कर, चारों धामों में जड़ पदार्थों की पूजा शुरू करवा दी।*
*आदि शंकराचार्य ने आर्यावर्त की सनातन वैदिक संस्कॄति को सुरक्षित व संरक्षित रखने के लिए अथक प्रयास करते हुए जहां अपना अमूल्य संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया, वहां उनके ही अधिकांश स्वार्थी और धूर्त अनुयायियों ने सनातन वैदिक धर्म व संस्कृति पर आधारित यज्ञ, योग व ध्यान द्वारा ईश्वर की सच्ची उपासना क्रियाविधि को धता बताते हुए स्थान स्थान पर धर्मात्मा महापुरुषों और कल्पित देवी-देवताओं की कल्पित मूर्तियां स्थापित कर, उन्हें परमात्मा बताकर मूर्तिपूजा जैसे अधम और वेदविरूद कर्मकांडों और आडंबरों द्वारा धर्म का सर्वनाश कर दिया।*
साभार:- वैदिक धर्म प्रचार सभा (वॉट्सएप्प समूह)