प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी ऋषि दयानन्द के विद्यागुरु थे। उन्होंने ही स्वामी दयानन्द को अष्टाध्यायी-महाभाष्य पद्धति से व्याकरण पढ़ाया था और शेष समय में उनसे शास्त्रीय चर्चायें करते थे जिससे स्वामी दयानन्द जी ने अनेक बातें सीखी थी।

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आदि शंकराचार्य बचपन से ही आत्मज्ञान के धनी थे। उन्होंने देखा, समझा, और जाना कि यहां तो मनुष्य यह जानने की कोशिश, प्रयत्न ही नहीं करते हैं कि इस संसार में हम सब प्राणियों को और सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी आदि को किसने बनाया है, क्यों बनाया है, कोई तो ऐसा कारण होगा। क्या- हमारा इन सभी गूढ़ रहस्यों को जानने समझने का फर्ज नहीं बनता है?

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मेरा जन्म कोलकाता में एक पढ़े लिखे परिवार में हुवा, इस परिवार ने कई डॉ० इंजीनियर से ले कर शिक्षा विद बोलपुर शांति निकेतन श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विश्वविद्यालय के अरबी फारसी के विभाग अध्यक्ष भी दिया |

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