27 Apr
27Apr


🌷🍃ओ३म् सादर नमस्ते जी 🌷🍃

🌷🍃आपका दिन शुभ हो 🌷🍃


दिनांक  - - १९ मार्च  २०१९

दिन  - - मंगलवार 

तिथि  - - त्रयोदशी 

नक्षत्र  - - मघा 

पक्ष  - - शुक्ल 

माह  - - फाल्गुन 

ऋतु  - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 

सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,११९

कलयुगाब्द  - - ५११९

विक्रम संवत्  - - २०७५

शक संवत्  - - १९४०

दयानंदाब्द  - - १९६


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🌷 'आर्य' शब्द के प्रमाण🌷


 सृष्टि की समकालीन पुस्तक ऋग्वेद में:-


🌷(१ ) कृण्वन्तो विश्वमार्यम ।

अर्थ-सारे संसार को 'आर्य' बनाओ।


मनुस्मृति में:-


🌷(२ ) मद्द मांसा पराधेषु गाम्या पौराः न लिप्तकाः।

आर्या ते च निमद्यन्ते सदार्यावर्त्त वासिनः।।


अर्थ-वे ग्राम व नगरवासी जो मद्द,मांस और अपराधों में लिप्त न हों तथा सदा से आर्यावर्त्त के निवासी हैं वे 'आर्य' कहे जाते हैं।


बाल्मीकि रामायण में-


🌷(३) सर्वदा मिगतः सदिशः समुद्र इव सिन्धुभिः ।

आर्य सर्व समश्चैव व सदैवः प्रिय दर्शनः ।।-(बालकाण्ड)


अर्थ-जिस तरह नदियाँ समुद्र के पास जाती हैं उसी तरह जो सज्जनों के लिए सुलभ हैं वे 'आर्य' हैं जो सब पर समदृष्टि रखते हैं हमेशा प्रसन्नचित्त रहते हैं।


🌷(४) महाभारत में:-

न वैर मुद्दीपयति प्रशान्त,न दर्पयासे हति नास्तिमेति।

न दुगेतोपीति करोव्य कार्य,तमार्य शीलं परमाहुरार्या।।(उद्योग पर्व)


अर्थ:-जो अकारण किसी से वैर नहीं करते तथा गरीब होने पर भी कुकर्म नहीं करते उन शील पुरुषों को 'आर्य' कहते हैं।


🌷(५) वशिष्ठ स्मृति में-

कर्त्तव्यमाचरन काम कर्त्तव्यमाचरन ।

तिष्ठति प्रकृताचारे यः स आर्य स्मृतः ।।


अर्थ:-जो रंग,रुप,स्वभाव,शिष्ठता,धर्म,कर्म,ज्ञान और आचार-विचार तथा शील-स्वभाव में श्रेष्ठ हो उसे 'आर्य' कहते हैं।


🌷(६) निरुक्त में यास्काचार्य जी लिखते हैं-

आर्य ईश्वर पुत्रः।


अर्थ-'आर्य' ईश्वर के पुत्र हैं।


🌷(७) विदुर नीति में-

आर्य कर्मणि रज्यन्ते भूति कर्माणि कुर्वते ।

हितं च नामा सूचन्ति पण्डिता भरतर्षभ ।।-(अध्याय १ श्लोक ३०)


अर्थ:-भरत कुल भूषण! पण्डित जन्य जो श्रेष्ठ कर्मों में रुचि रखते हैं,उन्नति के कार्य करते हैं तथा भलाई करने वालों में दोष नहीं निकालते हैं वही 'आर्य' हैं।


🌷(८) गीता में-

अनार्य जुष्टम स्वर्गम् कीर्ति करमर्जुन।-(अध्याय २ श्लोक २)


अर्थ:-हे अर्जुन तुझे इस असमय में यह अनार्यों का सा मोह किस हेतु प्राप्त हुआ क्योंकि न तो यह श्रेष्ड पुरुषों द्वारा आचरित है और न स्वर्ग को देने वाला है तथा न कीर्ति की और ही ले जाने वाला है(यहां पर अर्जुन के अनार्यता के लक्षण दर्शाये हैं)।


🌷(९) चाणक्य नीति में-

अभ्यासाद धार्यते विद्या कुले शीलेन धार्यते।

गुणेन जायते त्वार्य,कोपो नेत्रेण गम्यते।।-(अध्याय ५ श्लोक ८)


अर्थ:-सतत् अभ्यास से विद्या प्राप्त की जाती है,कुल-उत्तम गुण,कर्म,स्वभाव से स्थिर होता है,आर्य-श्रेष्ठ मनुष्य गुणों के द्वारा जाना जाता है।


🌷(१०) नीतिकार के शब्दों में-

प्रायः कन्दुकपातेनोत्पतत्यार्यः पतन्नपि।

तथा त्वनार्ष पतति मृत्पिण्ड पतनं यथा।।


अर्थ:-आर्य पाप से लिप्त होने पर भी गेन्द के गिरने के समान शीघ्र ऊपर उठ जाता है अर्थात् पतन से अपने आपको बचा लेता है,अनार्य पतित होता है तो मिट्टी के ढेले के गिरने के समान फिर कभी नहीं उठता।


🌷(११) अमरकोष में:-

महाकुलीनार्य सभ्य सज्जन साधवः।-(अध्याय२ श्लोक६ भाग३)


अर्थ:-जो आकृति,प्रकृति,सभ्यता,शिष्टता,धर्म,कर्म,विज्ञान,आचार,विचार तथा स्वभाव में सर्वश्रेष्ठ हो उसे 'आर्य' कहते हैं।


🌷(१२) कौटिल्य अर्थशास्त्र में-

व्यवस्थितार्य मर्यादः कृतवर्णाश्रम स्थितिः।


अर्थ:-आर्य मर्यादाओं को जो व्यवस्थित कर सके और वर्णाश्रम धर्म का स्थापन कर सके वही 'आर्य' राज्याधिकारी है।


🌷(१३) पंचतन्त्र में-

अहार्यत्वादनर्धत्वाद क्षयत्वाच्च सर्वदा।


अर्थ:-सब पदार्थों में उत्तम पदार्थ विद्या को ही कहते हैं।


🌷(१४) धम्म पद में:-

अरियत्पेवेदिते धम्मे सदा रमति पण्डितो।


अर्थ:-पण्डित जन सदा आर्यों के बतलाये धर्म में ही रमण करता है।


🌷(१५) पाणिनि सूत्र में:-

आर्यो ब्राह्मण कुमारयोः।


अर्थ:-ब्राह्मणों में 'आर्य' ही श्रेष्ठ है।


🌷(१६) काशी विश्वनाथ मन्दिर के मुख्य द्वार पर-

आर्य धर्मेतराणो प्रवेशो निषिद्धः।


अर्थ:-आर्य धर्म से इतर लोगों का प्रवेश वर्जित है।


🌷(१७) आर्यों के सम्वत् में:-

जम्बू दीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते अमुक देशान्तर्गते।


ऐसा वाक्य बोलकर पौराणिक भाई भी संकल्प पढ़ते हैं अर्थात् यह आर्यों का देश 'आर्यावर्त्त' है।


🌷(१८) आचार्य चतुरसेन और आर्य शब्द:-

उठो आर्य पुत्रो नहि सोओ।

समय नहीं पशुओं सम खोओ।

भंवर बीच में होकर नायक।

बनो कहाओ लायक-लायक।।


अर्थ:-तुम्हारा जीवन पशुओं के समान निद्रा के वशीभूत होने के लिए निर्माण नहीं हुआ है।यह समय तुम्हें पुरुषार्थ करने का है,यदि जीवन में तुम पुरुषार्थ करोगे तो किसी कहानी के नायक बनकर समाज के आगे उपस्थित होवोगे।


🌷(१९) पं. प्रकाशचन्द कविरत्न के शब्दों में:-

आर्य-बाहर से आये नहीं,

देश है इनका भारतवर्ष।

विदेशों में भी बसे सगर्व,

किया था परम प्राप्त उत्कर्ष।।

आर्य और द्रविड जाति हैं,

भिन्नचलें यह विदेशियों की चाल।

खेद है कुछ भारतीय भी,

व्यर्थ बजाते विदेशियों सम गाल।।


🌷(२०) पं. राधेश्याम कथावाचक बरेली वाले और आर्य शब्द:-

जब पंचवटी में सूर्पणखा राम के पास मोहित होकर अपना विवाह करने की बात राम से कहती है,तब राम उत्तर देते हैं-


हम आर्य जाति के क्षत्रीय हैं,

रघुवंशी वैदिक धर्मी हैं।

जो करें एक से अधिक विवाह,

कहते वेद उन्हें दुष्कर्मी हैं।।


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💐🙏आज का वेद मंत्र 💐🙏


🌷ओ३म् स न: पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव।  सचस्वा न: स्वस्तये। (ऋग्वेद १|१|९)


💐अर्थ  :- हे ज्ञानस्वरूप परमेश्वर  ! जैसे पुत्र के लिए पिता वैसे आप हमारे लिए उत्तम ज्ञान और सुख देने वाले हैं। आप हम लोगों को कल्याण के लिए सदा युक्त करें। 


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🕉🙏ज्ञान रहित भक्ति अंधविश्वास है 

🕉🙏भक्ति रहित ज्ञान नास्तिकता है 


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🌷🍃🌷🍃ओ३म् सुदिनम् 🌷🍃🌷🍃ओ३म् सुप्रभातम् 🌷🍃🌷🍃ओ३म् सर्वेभ्यो नमः 


💐🙏💐🙏कृण्वन्तोविश्मार्यम 💐🙏💐🙏जय आर्यावर्त 💐🙏💐🙏जय भारत

कमैंट्स
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