ओ३म्
“अयोध्या में आर्यसमाज की मान्यताओं के अनुरूप संचालित गुरुकुल महाविद्यालय”
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अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्म भूमि एवं कौशल देश की राजधानी रही है। लाखों वर्ष पूर्व त्रेता युग में अयोध्या में रामचन्द्र जी अपने माता-पिता और परिवार जनों के साथ निवास करते थे। ऋषि मुनि भी पर्याप्त संख्या में हुआ करते थे जो अध्ययन अध्यापन के साथ राजाओं को राजनीतिक निर्णय लेने में परामर्श देते थे। समय व्यतीत हुआ और महाभारत युद्ध से पूर्व देश में युद्ध की परिस्थितियां बनी जिसका परिणाम विनाशकारी महाभारत का युद्ध हुआ। इस युद्ध में जान-माल की भारी हानि हुई। शिक्षा एवं राज्य व्यवस्था पर भी पाण्डव एवं कौरव पक्षों के योद्धाओं की भारी संख्या में मृत्यु के कारण प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन गुरुकुलीय परम्परा अस्त व्यस्त होकर शिथिल व प्रभावहीन हो गई। यह अव्यवस्था व विद्यान्धकार बढ़ता रहा जिस कारण समाज में वेद विरुद्ध मान्यताओं का प्रचलन हुआ। समाज में मुख्यतः अज्ञान, अन्धविश्वास, मिथ्या परम्पराओं तथा अनेक धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियां प्रचलित हुईं। ऋषि दयानन्द (1825-1883) ने धार्मिक एवं सामाजिक जीवन के आदर्श मूल्यों का अनुसंधान किया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे की वेद ही सब सत्य विद्याओं की पुस्तक हैं और वेद का पढ़ना-पढ़ाना एवं सुनना व सुनाना सहित वैदिक मान्यताओं व सिद्धान्तों का प्रचार एवं वेदाचरण ही देश व समाज को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकता है। ऋषि दयानन्द ने देश व समाज की उन्नति व निर्माण के लिये गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति का प्रचार किया और इसका स्पष्ट विधान अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘‘सत्यार्थप्रकाश” में किया। इसी को देशोत्थान का उपाय जानकर ऋषि दयानन्द के भक्तों व अनुयायियों ने देश भर में गुरुकुलों की स्थापना की एवं वैदिक आर्ष शिक्षा प्रणाली से शिक्षा का प्रचार व प्रसार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश को वेदों के मर्मज्ञ विद्वान, संस्कृतज्ञ शिक्षक, देशभक्त नेता, पत्रकार एवं सदाचारी नागरिक मिले। देश में जागृति आयी और देश आजाद हुआ तथा आर्यसमाज की विचारधारा को सर्वांश में न अपनाने के कारण देश में कुछ बुरे काम यथा देश का विभाजन, इसके परिणामस्वरूप निदोश नागरिकों की हत्या तथा देश में अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये देश विरोधी कार्य करने वाले लोग भी उत्पन्न हुए व फल फूल रहे हैं।
अयोध्या में संचालित गुरुकुल का नाम है ‘‘श्री निःशुल्क गुरुकुल महाविद्यालय, अयोध्या फैजाबाद”। पत्रालय तहसील सदर तथा पिनकोड नं0 224123 है। गुरुकुल से यदि सम्पर्क करना हो तो मोबाइल संख्या 9415718089 एवं लैण्ड लाइन फोन 05278-240229 पर सम्पर्क किया जा सकता है। इस गुरुकुल की स्थापना स्वामी त्यागानन्द सरस्वती जी ने सन् 1925 में की थी। आप इसके प्रथम आचार्य थे। गुरुकुल का संचालन एक प्रबन्ध समित करती है। वर्तमान समय में यह गुरुकुल पूर्ववत् गतिशील एवं संचालित हो रहा है। इस गुरुकुल में आर्ष पाठविधि सहित उत्तर प्रदेश संस्कृत बोर्ड एवं विश्वविद्यालय की सरकारी पाठविधि से शिक्षण कराया जाता है। यह गुरुकुल उ0प्र0 माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद्, लखनऊ तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से सम्बद्ध है। आचार्य पर्यन्त परीक्षाओं तक गुरुकुल महाविद्यालय सरकार से मान्यता प्राप्त है। वर्तमान में यहां कुल छात्रों की संख्या 150 है। सभी छात्र गुरुकुल में ही निवास करते हैं। गुरुकुल के पास अपनी 13 एकड़ भूमि है जिसका स्वामीत्व गुरुकुल का ही है।
गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त स्नातक देश की विभिन्न आर्यसमाजों विद्यालयों, महाविद्यालयों/विश्वविद्यालयों आदि में कार्यरत हैं। इनमें से कुछ आर्यसमाज का प्रचार भी करते हैं। गुरुकुल में पठन-पाठन के साथ व्यायाम, कर्मकाण्ड, आर्यवीर दल सेवा, राष्ट्रीय सेवा योजना, योगासन, प्राणायाम एवं संगीत की शिक्षा भी दी जाती है। गुरुकुल अपने योग्य छात्रों को शास्त्री व आचार्य की उपाधि के साथ-साथ विद्या मार्तण्ड, विद्या वागीश एवं विद्या वारिधि उपाधियों से विभूषित करता है।
गुरुकुल की ओर से आर्यवीर दल के शिविर लगाये जाते हैं। योग शिविर लगाने के साथ आर्यसमाजों में वैदिक सिद्धान्तों का प्रचार व प्रसार भी किया जाता है। गुरुकुल के द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रमों को सम्पादित किया जाता है। गुरुकुल की विद्या सभा के द्वारा छात्रों को वक्तृत्व कला में प्रवीण बनाया जाता है। ग्रामीण अंचलों में जाकर यज्ञ एवं वेद प्रचार के आयोजन सम्पन्न कराये जाते हैं। आर्यसमाज की सभी प्रकार की गतिविधियों को सफलतापूर्वक संचालित व आयोजित करने में नगर की आर्यसमाज को सहयोग दिया जाता है। गुरुकुल के द्वारा ब्रह्मचारियों का वार्षिकोत्सव पर सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार सम्पादित कर वैदिक वर्ण व्यवस्था को आगे बढ़ाया जाता है।
गुरुकुल में गोशाला, यज्ञशाला, पुस्तकालय, वाचनालय, औषधालय आदि का संचालन किया जाता है। ब्रह्मचारी गुरुकुल की पत्रिका सम्पादन कर लेखन व सम्पादन कला से परिचित होते हैं। गुरुकुल का उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास अर्थात् उनकी शारीरकि, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति करना है। वर्तमान में गुरुकुल के प्राचार्य आचार्य नागेन्द्र कुमार शास्त्री जी हैं। उनके नेतृत्व में गुरुकुल संचालित हो रहा है। हम गुरुकुल को अपनी शुभकामनायें देते हैं। हम चाहते हैं कि गुरुकुल आर्ष शिक्षण प्रणाली की रक्षा करते हुए अपने छात्रों को अधिक संख्या में वैदिक विद्वान बनाये। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य