यज्ञ वा अग्निहोत्र की हम समस्त आहुतियों को ‘इदमग्नये, इदन्न मम’ कहकर ईश्वर को समर्पित करते हैं। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक व सर्वान्तर्यामी सत्ता होने से हमारे बाहर भीतर ओतप्रोत हो रहा है। हमारी प्रार्थनाओं को वह स्पष्टतः सुनता है। हम मन में विचार भी करते हैं तो उसे भी वह यथावत् जानता है।
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