ऋषि दयानन्द ने महाभारत युद्ध के बाद समाज में उत्पन्न अन्धविश्वासों, पाखण्डों, सामाजिक कुप्रथाओं, शिक्षा व अध्ययन में अनेक प्रकार के प्रतिबन्धों का जमकर विरोध वा खण्डन किया और उन्हें वेदविरुद्ध, अविद्या का पोषक तथा मानव जाति के लिये अहितकर बताया।

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