वेद जीवित पितरों की सेवा का ही वर्णन करते हैं, मृतकों की सेवा का नहीं , जैसाकि 🔥 आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्याय। पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्रयच्छत इहो दधात ॥ -यजुः० १९ । ६३ 🌻भाषार्थ-हे पितरो! हवि देनेवाले मनुष्य यजमान के लिए आप धन देवें। आप कैसे हैं? लाल रंग के ऊन के आसनों पर बैठे हुए। और हे पितरो! आप पुत्र और यजमानों से उस धन का धारण करो, और वे आप इस संसार में हमारे यज्ञ में रस धारण करो ॥६३॥

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