भारत सरकार के पास इस बात के इन्पुट थे कि मुंबई पर कोई आतंकवादी हमला हो सकता है। यह भी सूचना थी कि हमलावर तटवर्ती इलाकों से प्रवेश करेंगे और प्रसिद्ध स्थानों को निशाना बनाएंगे। ये सारे इन्पुट राज्य सरकार को भी दिये गये थे। लेकिन संभावित हमले के इन्पुट होने के बाद भी सुरक्षा की कोई तैयारी नहीं की गयी। लेकिन कांग्रेस की सरकारों की नाकामी यहीं तक आकर नहीं रुकी।
मुंबई पर आतंकी हमले के बाद गृह मंत्रालय की ओर से तत्काल कार्रवाई करने के मकसद से सीआईएसएफ को आतंकवादियों को रोकने के लिए भेजने का प्रस्ताव आया लेकिन उसे राजनीतिक मंजूरी नहीं गयी। अगर यह मंजूरी मिल जाती तो शायद इतनी जनहानि न होती और आतंकवादी अपने लिए सुरक्षित ठिकाने न बना पाते।
उधर मुंबई में आतंकवादी तबाही मचाये हुए थे तो यहां दिल्ली में राजनीतिक नेतृत्व गलत पर गलत निर्णय ले रही थी। पहले तो एनएसजी के लिए हवाई जहाज ही नहीं मिला और मिला तो तीन घंटे तक उसे सिर्फ इसलिए रोककर रखा गया क्योंकि उनके साथ गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने जाने का निर्णय कर लिया। शाम से पालम एयरपोर्ट पर तैयार बैठी एनएसजी को रात 12.30 बजे मुंबई के लिए उड़ान भरनी थी लेकिन वो उड़ान इसलिए नहीं भर पाये क्योंकि गृहमंत्री ने साथ जाने का निर्णय ले लिया। इस सूचना के तीन घंट बाद वो एयरपोर्ट पहुंचे जिसके बाद ही कमांडों मुंबई के लिए उड़ान भर पाये।
क्या ऐसा जानबूझकर किया गया ताकि आतंकवादी ज्यादा से ज्यादा तबाही मचा सकें? आखिर आसपास मौजूद सीआईएसएफ के जवानों को आतंकवादियों से निपटने की मंजूरी क्यों नहीं दी गयी? आखिर क्या कारण है गृह मंत्रालय की ओर से राज्य के चीफ एडिशनल सेक्रेटरी को जो सूचनाएं दी गयी थीं, उस पर कार्रवाई नहीं की गयी? आखिर क्यों करीछ छह सात घण्टे एनएसजी को पालम एयरपोर्ट पर अनावश्यक रूप से रोककर रखा गया? क्या शिवराज पाटिल का उसी जहाज में जाना जरूरी था? आखिर क्या कारण है जिस एडीशनल चीफ सेक्रेटरी को सारी सूचना दी गयी थी वो ठीक हमले के वक्त ताज होटल में मौजूद थी और उसे खरोच तक नहीं आयी? पूर्व सूचना होने के बाद भी केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने तटवर्ती इलाकों से चौकसी क्यों हटा ली थी? क्या आतंकवादी हमलों को घटित हो जाने दिया गया? आखिर क्या कारण है कि जितने हमलावर थे उनके फर्जी आई पर हिन्दू नाम और हाथ में रक्षासूत्र बंधा हुआ था? अगर कसाब जिन्दा न पकड़ा जाता तो क्या इसे हिन्दू आतंकी कार्रवाई नहीं साबित कर दिया जाता?
बहुत सारे संदेहास्पद लिंक हैं जिनकी कभी पड़ताल ही नहीं की गयी। 2006 से 2010 के बीच हिन्दू आतंकवाद पैदा करने के लिए कांग्रेस ने कितनी कड़ी मेहनत की है वो मणि की किताब से पता चलता है। एक ऐसा घिनौना षण्यंत्र जिसकी अगुवाई कांग्रेस की तरफ से दिग्विजय सिंह कर रहे थे। पहले शिवराज पाटिल और फिर बाद में सुशील कुमार शिंदे ने इस घिनौनी साजिश को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश किया लेकिन 2014 के आम चुनाव में जनता ने कांग्रेस की साजिशों को नाकाम कर दिया।
यह सारी कवायद शायद इसलिए की गयी कि आरएसएस को इसके लिए जिम्मेवार बताकर उस पर बैन लगा दिया जाए। अगर कांग्रेस अपनी साजिशों में सफल हो जाती तो शायद बैन लग भी जाता लेकिन सोचिए जरा इससे १०० करोड़ हिन्दुओं के चेहरे पर आतंकवाद की जो कालिख लगती क्या वो उसे कभी धो पाते?
-संजय तिवारी