11 May
11May

*ओ३म्*


*🌷अवतारवाद वेदविरुद्ध🌷*


*प्रश्न―"ईश्वर अवतार लेता है"―भगवान श्री कृष्ण ने तो गीता में ऐसा ही कहा है।*


*उत्तर―*अवतार कहते हैं―ऊपर से नीचे उतरना। आत्मा एकदेशी है, अतः उसका अवतरित होना सम्भव है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। पहले भगवान किसे कहते हैं इसे समझने की आवश्यकता है।


*ऐश्वर्यस्य समग्रस्य तेजसः यशसः श्रियः ।*

*ज्ञानवैराग्ययोश्चैव, षष्णां भग इतींगिना ।।*

―(विष्णु पुराण)

*अर्थात्―*जिस मनुष्य में छः गुण विद्यमान होते हैं उसे भगवान कहा जा सकता है। वे गुण हैं―ऐश्वर्य-तेज-यश-श्री-ज्ञान और वैराग्य। 

श्रीकृष्ण योगिराज तो थे ही, साथ-साथ भगवान भी थे। मनुष्य में अगर ये उपर्युक्त गुण हैं तो वह भगवान कहाने योग्य बनता है। ईश्वर गुणों का भण्डार है, उसमें अनेक गुण हैं, अतः वे भी भगवान कहाते हैं। परन्तु एक बात ध्यान में रखने योग्य है कि मनुष्य भगवान तो बन सकता है, परन्तु ईश्वर कभी नहीं बन सकता। अक्सर लोग इसमें भ्रमित हो जाते हैं कि भगवान और ईश्वर एक ही हैं। यह गलत है।

अब अवतार तो वही ले सकता है जो एकदेशी अणु हो, जैसे आत्मा! परमात्मा सर्वव्यापक है, अतः उसके अवतार अर्थात् शरीरधारण करने का प्रश्न ही नहीं उठता। ईश्वर को अवतार के रुप में मान लेना अज्ञानता है।


ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरुप, निराकार, सर्वशक्तिमान्-न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, सर्वज्ञ, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। जो स्वयं इस संसार को बनाता है, सँवारता है और संहार करता है, उस सर्वत्र विद्यमान को अवतरण की क्या आवश्यकता है?


ईश्वर निराकार है―निर्विकार है―सर्वज्ञ है, फिर उसको माँ के पेट में 9 महिने 10 दिन रहने की क्या आवश्यकता है? निराकार होकर साकार होना असंभव है। भला वह परमात्मा विकारी क्यों कर बन सकता है? सर्वज्ञ होकर वह अल्पज्ञ क्यों बनना चाहेगा? ईश्वर तो सर्वव्यापक है, ऐसा कौन-सा स्थान है जहाँ वह पहले से विद्यमान नहीं? वह सदा से एकरस है, शुद्ध-पवित्र है―वह सबका माता-पिता-बंधु-सखा है, फिर उसे किसी का बेटा बनने की क्या पड़ी है?

श्रीकृष्ण भगवान योगेश्वर थे, उनको अच्छे-बुरे का भलीभाँति ज्ञान था। महान् आत्मा होने के कारण उनकी प्रबल इच्छा थी कि जब-जब धरती पर अन्याय के कारण अधर्म फैलता है उस समय अगर मैं जन्म लेकर लोगों को अधर्म से बचाऊँ और धर्म की फिर से स्थापना करूँ, तो इस कथन में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? महात्मा लोगों की भावना यही होती है कि जब-जब जन्म लेवें भटके हुओं को सही मार्ग दिखाएँ तथा उनको लक्ष्य तक पहुँचाने में ही उनका मार्ग प्रशस्त करें।


श्रीकृष्ण योगी थे-महात्मा थे। अगर उनकी यह इच्छा रही होगी तो क्या बुराई है? उनके कथन को हम लोगों ने गलत समझा है कि जब चाहें जन्म ले सकते हैं। मुक्तात्माएँ भी यही चाहती हैं कि वे संसार में जाकर सबका मार्गदर्शन करें।


ईश्वर की व्यवस्था के बिना कोई भी आत्मा स्वेच्छा से शरीर धारण नहीं कर सकता और न ही शरीर का निर्माण कर सकता है।

जरा सोचिये और विचारिये कि ईश्वर जन्म क्यों लेना चाहेगा या अवतार लेना क्यों चाहेगा? दुष्ट लोगों का सफाया करने के लिए? परमपिता परमात्मा कभी बिना कारण के किसी को कष्ट नहीं देता। मनुष्य मरता है अपने ही कारणों से। प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध आचरण से शरीर में परिवर्तन आता है―शरीर रोगी बन जाता है और अंतिम परिणाम मृत्यु होती है। मृत्यु के अनेक कारण होते हैं।

ईश्वर सबको सुधरने का अवसर देता है। मनुष्य बुरा हो या अच्छा―सबको जीने का अधिकार मिलता है। किसी विशेष व्यक्ति का नाश करने के लिए ईश्वर अवतार ले, यह तो ईश्वर का निरादर करना है। कंस को मारने के लिए श्रीकृष्ण ने जन्म लिया या अवतार लिया―यह धारणा वेदविरुद्ध सिद्ध होती है। अगर ऐसा है तो हर मनुष्य को मारने के लिए एक-एक मनुष्य को पैदा होना पड़ेगा। कहते हैं न―ईश्वर की लाठी चलती है तो आवाज नहीं करती। भला ईश्वर स्वयं अवतार ले―संसार के चक्कर में आवे―खावे-पीवे―विवाह करे―उसके भी बच्चे हों―संसारी बन जावे और अन्त में मृत्यु को प्राप्त होवे फिर ब्रह्माण्ड को कौन चलाएगा?


अगर ईश्वर चाहे किसी को कोई बीमारी लगाकर मार दे, उसका ह्रदय विदिर्ण कर दे या पल भर में भूकम्प से सैकडों लोग मार दे, जब इतनी बड़ी सृष्टि बनाने में ईश्वर अवतार नहीं लेता तो क्या एक जीव को मारने के लिए ईश्वर जन्म-मरण के बन्धन में बँधेगा? ये केवल मूर्खता है।


मनुष्य का अवतरण या जन्म-मरण संभव है–महापुरुषों का अवतरण या जन्म संभव है, परन्तु ईश्वर को ऐसे बंधनों में बाँधना केवल नासमझी की ही बात है। ये स्वार्थी लोगों की पोपलीलाएँ हैं, और कुछ भी नहीं।


ईश्वर का साकार अर्थात् शरीरधारण करना सर्वथा असम्भव है। परमात्मा निराकार है, उसको ज्ञान द्वारा अनुभव किया जा सकता है।योगसाधना से ईश्वर की प्राप्ति होती है।


न कभी ईश्वर का अवतार हुआ है और न कभी होगा―यही सत्य है, यही वैदिक मान्यता है। ईश्वर निराकार है और निराकार ही रहेगा।

कमैंट्स
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