*अत्यंत रोचक ज्ञानवर्धक चर्चा-*
*प्रश्न) आप सब धर्मो का खंडन करते ही आते हो परन्तु अपने अपने धर्म में सब अच्छे है। किसी भी धर्म का खंडन नहीं करना चाहिए।जो आप दूसरे के धर्मो का खंडन करते हो तो आप इन से विशेष क्या बतलाते हो।जो बतलाते हो तो क्या आप से अधिक ज्ञानी पुरुष क्या दुनिया में नहीं है? इसलिए ऐसा अभिमान करना कि आप ही केवल श्रेष्ठ हो और आपका धर्म ही महान है,ऐसा करना आपके लिए उचित नहीं है।क्युकी परमात्मा की सृष्टि में एक -एक से अधिक ज्ञानी है।किसी भी मनुष्य को अपने धर्म पर घमंड करना उचित नहीं है???*
उत्तर)धर्म सब का एक होता है व अनेक ? जो आप कहते हो कि धर्म अनेक होते है तो यह भी बताइए की क्या धर्म एक दूसरे के विरूद्ध होते है व अविरुद्ध??? जो आप कहो कि धर्म एक दूसरे के विरूद्ध होता है तो एक के बिना दूसरा धर्म तो कभी हो ही नहीं सकता ।और आप यदि कहते हो कि धर्म एक दूसरे के अविरूद्ध है तो पृथक पृथक धर्म का होना भी व्यर्थ है।इसलिए धर्म और अधर्म एक ही है;अनेक नहीं ।बाकी सभी धर्म ,कभी धर्म नहीं हो सकते । वे तो मनुष्यो द्वारा चलाए गए मजहब व मत मतांतर हो सकते हैं ,परन्तु धर्म नहीं।यही हम आर्य जाति हिन्दुओं को विशेष बतलाते हैं कि जैसे सब संप्रदायों के उपदेशकों को कोई राजा या जज इकट्ठा कर दे तो एक हजार संप्रदाय (मत)से कम नहीं होगे इस भ देश में ,परन्तु अगर इन संप्रदायों का मुख्य भाग देखो तो पुरानी (अर्थात पुराण को मानने वाले), कुरानी (अर्थात कुरआन को मानने वाले);किरानी (अर्थात् क्रिश्चियन मत को मानने वाले)और जैनी ;ये चार मत व संप्रदाय ही प्रमुख मत है ,जो विश्व भर में फैले हुए हैं। क्योंकी इन चारो मतो में सारे संप्रदाय अा जाते है।कोई राजा उन संप्रदायों की सभा कर के वा कोई जिज्ञासु खड़ा होकर पहले दुष्ट मार्गी से पूछा---हे महाराज!!! मैंने आज तक न कोई गुरु को अपनाया है और न किसी धर्म का ग्रहण किया है।कहिए!!!सब धर्मो में से उत्तम धर्म किस का है?जिस धर्म को मैं ग्रहण और स्वीकार करू???
(दुष्ट मार्गी):हमारा धर्म सबसे अच्छा है जी।
(जिज्ञासु):ये नौ सौ निन्यानबे धर्म कैसे है ???
(दुष्टमार्गी):सब धर्म झूठे और नरक गामी है और नरक में ले जाने वाले है क्योंकि हमारे धर्म से परे और अच्छा दुनिया में कोई धर्म नही है।
(जिज्ञासु):आपका क्या धर्म है???
(दुष्ट मार्गी):भगवती का मानना, शराब मांस आदि पंच मकारो का सेवन और रूद्रयामल आदि चौसठ तंत्रों का मानना इत्यादि केवल हमारे धर्म में है और किसी के धर्म में नहीं है;जो अगर तू मुक्ति की इच्छा करता है तो हमारा चेला हो जा।हम तुझे जरूर मुक्ति दिलाएगे।
(जिज्ञासु): अच्छा परन्तु और महात्माओं का भी दर्शन कर पूछ पॉच आऊंगा ।उसके पश्चात जिस भी धर्म में मेरी श्रृद्धा और प्रेम होगी ,उस धर्म का में चेला हो जाऊंगा।
(दुष्ट मार्गी):अरे!क्यों भ्रांति में पड़ा है।ये लोग तुझको बहका कर अपने जाल में फसा देगे।किसी के पास भी मत जाना।हमारा ही सरनागत हो जा।नहीं तो बाद में पच्चताएगा। देख हमारे मत में भोग और मोक्ष(मुक्ति) दोनों ही है।
(जिज्ञासु): अच्छा और मत मजहब को भी देख तो लूं।आगे चल कर वह जिज्ञासु शैव पंथी (शिव भक्त)के पास जाके पुछा तो ऐसा ही उत्तर उस शैव पंथी ने भी दिया जैसा भगवती के मानने वाले ने दिया।इतना विशेष उस शैवी पंथी ने कहा कि बिना शिव ,रुद्राक्ष,भस्म के धारण और शिव लिंग के पूजा किए बिना मुक्ति नहीं मिलती हैं। वह उस शैव पंथी को छोड़ के नवीन वेदांती जी (उर्फ विवेकानन्दी जैसों) के पास गया।
(जिज्ञासु): कहो महाराज!!!आप का धर्म क्या है?
(वेदांती):हम धर्म और अधर्म कुछ भी नहीं मानते।हम साक्षात ईश्वर (ब्रह्म) है ।हम वेदांत को मानने वाले में धर्म व अधर्म कहा है?यह जगत सब मिथ्या है।और जो भी मनुष्य ज्ञानी बनना चाहता है व शुद्ध चेतन ईश्वर होना चाहता है तो अपने को ईश्वर म।न लो;जीव भाव को छोड़ कर वह नित्य मुक्त हो जाएगा।
(जिज्ञासु):जो तुम स्वयं ही ईश्वर (ब्रह्म)हो और नित्यमुक्त भी हो तो ईश्वर ( ब्रह्म)के गुण, कर्म स्वभाव तुम में क्यों नहीं है???और शरीर के बंधन में क्यों बंधे पड़े हुए हो???
(वेदांती):तुझको शरीर दिखता है ;इसी से तू भ्रांत है।हम को कुछ नहीं दिखता ;बिना ब्रह्म के।
जिज्ञासु):तुम बोलने वाले व देखन वालेे कौन हो और किसको देखते हो???
वेदांती):देखने वाला मनुष्य ब्रह्म है और ब्रह्म को ही ब्रह्म देखता है।
(जिज्ञासु):क्या दो ब्रह्म(ईश्वर) है???
वेदांती):नहीं अपने आप को देखता है।
जिज्ञासु):क्या कोई अपने कंधे पर स्वयं चढ़ सकता हैं???तुम्हारी बात कुछ नहीं केवल पागल पन की है।
उस जिज्ञासु ने आगे चल कर जैनियों के पास जा कर पूछा ।उन जैनियों ने भी वेदान्तियों और शैवों के जैसा ही कहा परन्तु जैनियों ने इतना विशेष कहा कि जैन धर्म के बिना सब धर्म खोटा है।जगत का करता अनादि ईश्वर कोई नहीं है। जगत अनादि काल से जैसा का वैसा बना है और बना रहेगा।अा तू हमारा चेला हो जा।क्योंकि हमारा धर्म सब प्रकार से अच्छा है।उत्तम बातो को मानते हैं। जैन धर्म से भिन्न सब धर्म मिथ्या है जैसे यह जगत मिथ्या है।
आगे चल के ईसाई से पूछा। पोप जी ने इतना विशेष बतलाया कि सब मनुष्य पापी है;अपने सामर्थ्य से पाप नहीं छूटता ।बिना ईसा मसीह jesus christ ) पर विश्वास के पवित्र होकर मनुष्य मुक्ति को नहीं पा सकता। ईसा मसीह ने सब के प्रायश्चित के लिए अपने प्राण देकर मनुष्यो में दया प्रकाशित की है। तू ईसाई मत को अपना ले ।तेरा कल्याण होगा।
जिज्ञासु यह सुनकर मौलवी के पास गया।उन मौलवी साहब से भी ऐसे ही सवाल जवाब हुए।मौलवी साहब ने इतना विशेष इस्लाम के बारे में कहा कि बिना खुदा अल्लाह को माने और कुरानसरीफ के बिना माने कोई दोज़ख़ से निकल नहीं सकता।जो इस्लाम को नहीं मानता वह दोजखी और काफिर है।उसका कतल कर दो।
जिज्ञासु इतना सुनकर वैष्णव के पास गया। वैसा ही संवाद हुआ।वैष्णव संप्रदाय ने इतना विशेष कहा कि हमारे तिलक छाप को देखकर यमराज डरता है।
जिज्ञासु ने मन में ही सोचा कि जब मच्छर, मक्खी ,पुलिस के सिपाही ,चोर,डाकू,और शत्रु नहीं डरते तो यमराज के गण क्यों डरेंगे??? फिर जिज्ञासु आगे बढ़ा और सब मत मजहब वालो ने अपने अपने धर्म को सच्चा कहा।कोई कहता कि हमारा कबीर ही सच्चा है,कोई कहता नानक अच्छा है। कोई दादू , तो कोई बल्लभ; कोई सहजानंद तो कोई माधव मत को बड़ा और अवतार बतलाते सुना।हजारों संप्रदायवादी यो से पूछने के बाद उन सब मत के परस्पर एक दूसरे के विरोध को देखकर जिज्ञासु ने यह निश्चय किया कि इन सारे संप्रदायों से इनमें से एक भी गुरु करने योग्य नहीं हैं।क्योंकि एक एक कि झूट में नौ सौ निन्यानबे गवाह हो गए हैं।जैसे झूठे दुकानदार व बैश्या और भडुआ आदि अपनी अपनी वस्तु कि बड़ाई करता है और दूसरो कि निंदा करता है वैसे ही ये सम्प्रदायी है । जिज्ञासु को इस बात को ध्यान में रखते हुए उस सत्य चेतन स्वरुप ईश्वर को जानने के लिए वेदों को जानने वाले व परमात्मा को जानने वाले गुरु के पास जाए।इन नाना प्रकार के मत वाले व पाखंडियों के जाल में न गिरे। जब ऐसा जिज्ञासु किसी अच्छे वैदिक विद्वान के पास जाए तो उस शांत चीत जितेंद्रिय जिज्ञासु को यथार्थ ब्रह्म विद्या व परमात्मा के गुण,कर्म,स्वभाव का उपदेश करे ।और जिस जिस साधन से वह श्रोता (जिज्ञासु) धर्म ,अर्थ,काम ,मोक्ष और परमात्मा को जान सके ;वैसी शिक्षा करे। जब वह जिज्ञासु ऐसे गुरु के पास जाकर बोला कि महाराज अब इन संप्रदायों मत मजहब के बखेड़ों से मेरा चित्त भ्रांत हो गया है क्योंकि जो मैं इन में से किसी एक का चेला होऊंगा तो नौ सौ निन्यानबे से विरोधी होना पड़ेगा।जिस के नौ सौ निन्यानबे शत्रु और एक मित्र है ;उस व्यक्ति को कभी सुख नहीं हो सकता।इसलिए आप मुझको उपदेश कीजिए जिसको में ग्रहण करू।
श्रेष्ठ विद्वान: ये दुनिया में सारे मत मजहब अविद्या व अंधकार फैलाने वाले विद्याविरोधी मत है।मूर्ख और भोले भाले मनुष्यो को बहका कर अपने मत मजहब के जाल में फसा कर अपना पेट भरते हैं और सिर्फ अपना प्रयोजन सिद्ध करते हैं। वे बिचारे भोले भाले मनुष्य अपने मनुष्य जन्म के फल से रहित होकर अपना मनुष्य जन्म व्यर्थ गवाते है।देखो सज्जन पुरुष!जिस बात में ये हजारों संप्रदायवादी व मत बादी एक मत हो वह वेद धर्म को ग्रहण करो और जिन मत संप्रदायो व मजहबोंं में परस्पर विरोध हो वह मत कल्पित , झूटा ,अधर्म और ग्रहण करने योग्य नहीं हैं।
जिज्ञासु):तो कौन धर्म अच्छा है और ग्रहण करने योग्य हो;इसकी परीक्षा कैसे हो???
श्रेष्ठ विद्वान): तू इन संप्रदायवादी यो से इन इन बातो को पूछ ।सब की एक सम्मति हो जाएगी। तब वह जिज्ञासु उन हजारों संप्रदायवादीयो की मंडली में खड़ा होकर बोला कि सुनो भाइयों !सत्य बोलने में धर्म है या मिथ्या बोलने में ???
सब लोगो ने कहा कि सत्य बोलने में ही धर्म है और असत्य बोलने में अधर्म है।वैसे ही विद्या पढ़ने, ब्रह्मचर्य का पालन करने;पूर्ण युवा अवस्था में विवाह करने, सत्संग करने, पुरुषार्थ करने ,सत्य व्यवहार करने आदि में ही धर्म है कि नहीं ये कहो???और असत्य बोलने; आविद्या ग्रहण करने, छल कपट , आलस्य, कुसंग, असत्य व्यवहार , व्यभिचार करने, ब्रह्मचर्य का पालन न करने में व परहानी करने में अधर्म है कि नहीं ???
*सब लोगो ने एक मत होकर कहा कि विद्या आदि के ग्रहण करने में धर्म सिद्ध होता है और अविद्दया आदि के ग्रहण करने से अधर्म और पाप बढ़ता है।*
*तब जिज्ञासु ने सब से कहा कि तुम सब लोग इसी प्रकार से मिल जुल कर सब लोग एक मत हो सत्य वैदिक धर्म की उन्नति क्यों नहीं करते हो और मिथ्या मत मजहब संप्रदाय का नाश क्यों नहीं करते हो???*
*वे सब लोग बोले ---जो हम ऐसा करेगे तो हम को कौन पूछेगा?हमारे चेले हमारी आज्ञा में नहीं रहेंगे। हमारी जीविका नष्ट हो जाएगी।फिर जो हम इतना आनंद कर रहे है वह सब हाथ से निकाल जाएगा।इसलिए हम जानते है तो भी अपने अपने मत मजहब संप्रदाय का उपदेश और अपने ही मत में शामिल होने का आग्रह करते ही जाते है क्योंकि"रोटी खाइए शक्कर से;और दुनिया ठगिए मक्कर से"""ऐसी बात है।देखो संसार में सीधे सच्चे मनुष्यो को कोई एक पैसा नहीं देता और न ही कोई पूछता है।जो जितनी अधिक ढोंग बाजी और धूर्तता करता है वह उतना ही अधिक पदार्थ पाता है।*
(जिज्ञासु):जो तुम लोग ऐसा पाखंड मत चलाकर अन्य मनुष्यो को ठगते हो तो फिर तुमको राजा दंड क्यों नहीं देता??
संप्रदाय वाले): हम ने राजा को भी अपना चेला बना लिया है ।हम ने पक्का प्रबंध किया है,;छूटेगा नहीं।
जिज्ञासु):जब तुम छल से अन्य मनुष्यो को ठग के उन की इतनी हानि करते हो तो परमेश्वर को क्या उत्तर दोगे??और घोर नरक में पड़ोगे।थोड़े से जीवन के लिए इतना बड़ा अपराध क्यों नहीं छोड़ते???
संप्रदाय वाले):जब जैसा होगा तब देखा जाएगा।नरक और परमेश्वर का दण्ड जब होगा तब होगा अभी तो आनंद करते हैं।हम को सभी लोग प्रसन्नता से धन आदि पदार्थ देते हैं ।कुछ जबरदस्ती नहीं लेते हैं । फिर राजा हमें बिना अपराध क्यों दंड देवे???
जिज्ञासु):जैसे कोई व्यक्ति छोटे बालक को बहला फुसलाकर के धन आदि पदार्थ छीन लेता है, जैसे उसको दंड मिलता है;वैसे तुम को क्यों नहीं मिलता???
क्योंकि
अग्यो भवति वै बाल:पिता भवति मंत्रद:।।
भावार्थ: जो ज्ञान रहित होता है वह बालक कहाता है और जो ज्ञान का देने वाला है वह पिता कहलाता हैं ।जो व्यक्ति बुद्धिमान व विद्वान है वह तो तुम्हारी पाखंड मत और बातों में नहीं फस्ता है ।किन्तु जो मनुष्य भोले भाले और अज्ञानी है और बालको के जैसे है ;उनको ठगने के जुर्म में तुम जैसे लोगो को राज दंड अवश्य होना चाहिए।
संप्रदाय वाले):जब राजा - प्रजा सभी लोग हमारे पाखंड मत में है तो हम को दंड कौन देने वाला है ?? जब राजा ऐसी कोई व्यवस्था करेगा तब इन पाखंडों को छोड़ कर कुछ जीविकोपार्जन की दूसरी व्यवस्था करेगे।
जिज्ञासु):जो तुम बैठे बैठे व्यर्थ माल मारते हो ;इससे अच्छा तो यह होगा की तुम कुछ विद्या का अभ्यास कर गृहस्थों के लडके लड़कियों को पढ़ाया करो तो तुम्हारा भी कल्याण होगा और गृहस्थों का भी कल्याण हो जायेगा।
जिज्ञासु):जब हम बाल्यावस्था से लेकर मरण तक के सुखों को छोड़ के; बाल्यावस्था से युवावस्था पर्यन्त विद्या पढ़ने में रहे ;पश्चात पढ़ने पढ़ाने में और उपदेश करने कराने में जन्म भर परिश्रम करे ;इतना सब कुछ करने का हमे क्या प्रयोजन है???
हम को तो ऐसे ही बैठे बिठाए लाखो करोड़ो रुपए मिल जाते है।मज़े से चैन करते हैं !उस सुख को क्यों छोड़े??
जिज्ञासु):इसका परिणाम तो बुरा है । देखो ,तुम को बड़े बड़े रोग होते है। शीघ्र मर जाते हो। बुद्धिमान लोगो के बीच निंदित होते हो।फिर भी क्यों नहीं समझते??
संप्रदाय वाले):अरे भाई!!!
टका धर्माष्तका कर्म टका हि परमम पदम ।
यश्य गृहे टका नास्ती हा!! टका म टकायते।।
आना अंसकला:प्रोक्ता:रूपयो असो भगवान स्वयं।
अतस्तम सर्व इच्चनती रुपया ही गुणवन्तम।।।
तू लड़का है ।संसार की बातें नहीं जानता ।देख!टका के बिना धर्म,टका के बिना कर्म,टका के बिना परमपद नहीं होता।जिस के घर में टका नहीं है वह हाय!टका - टका करता करता उत्तम पदार्थो को टक टक देखता रहता है कि हाय !मेरे पास टका होता तो इस उत्तम पदार्थो को मैं भोगता।इसलिए सब कोई रूपयो की खोज में लगे रहते हैं ,क्योंकि सब काम रूपयो से सिद्ध होते है ।
जिज्ञासु):ठीक है ।तुम्हारी भीतर की लीला बाहर अा गई ।तुम ने जितना यह पाखंड मत मजहब खड़ा किया है वह सब अपने सुख के लिए किया है परन्तु तुम्हारे असत्य बोलने से जगत का नाश होता है क्योंकि जैसा सत्य उपदेश से संसार के लोगो को लाभ पहुंचता है ;वैसी ही असत्य के उपदेश से बहुत हानि होती हैं।जब तुमको धन का ही प्रयोजन था तो वह तो आप लोग नौकरी और व्यापार आदि कर्म करके भी धन इकट्ठा कर सकते थे; सो क्यों नहीं कर लेते ह???
संप्रदाय वाले):उस में परिश्रम अधिक और हानि भी हो जाती हैं।परन्तु इस हमारी पाखंड मत को फैलाने में हानि कभी नहीं होती किन्तु सर्वदा लाभ ही लाभ होता है।
जिज्ञासु):ये लोग तुमको बहुत सा धन किस लिए देते है???
संप्रदाय वाले):धर्म, स्वर्ग और मुक्ति के लिए देते है।
जिज्ञासु):जब तुम ही मुक्त नहीं और न ही मुक्ति का स्वरूप व साधन जानते हो तो तुम्हारी सेवा करने वालो को क्या मिलेगा??
संप्रदाय वाले,):क्या इस लोक में मिलता है??नहीं,किन्तु मरकर पश्चात परलोक में मिलता है।जितना ये लोग हम को धन आदि देते है और सेवा करते हैं वह सब इन लोगो को परलोक में मिल जाता हैं।
जिज्ञासु):इन भोले भाले अज्ञानी लोगो को तो दिया हुआ धन मिल जाता हैं वा नहीं ।तुम लेने वालो को क्या मिलेगा??नरक वा अन्य कुछ ???
संप्रदाय वाले):हम भजन करते और कराते हैं ।इसका सुख हमको ही तो मिलेगा।
जिज्ञासु):तुम्हारा लोगो को भजन सुनना और सुनाना भी तो टके के लिए ही है। वे सब टके यही पड़े रह जायेगे और जिस मांस पिंड के मनुष्य शरीर को पालते हो,वह मानव शरीर भी भस्म होकर यही रह जाएगा।जो तुम परमेश्वर का भजन कीर्तन कर रहे होते तो तुम्हारा आत्मा भी पवित्र होते ।
संप्रदाय वाले):क्या हम अशुद्ध है???
जिज्ञासु):भीतर के बड़े मैले हो
संप्रदाय वाले):तुमने कैसे जाना???
जिज्ञासु):तुम्हारे चाल चलन व्यवहार से ।
संप्रदाय वाले): महात्माओं का व्यवहार हाथी के दांत के समान होता है।जैसे हाथी के दांत खाने के अलग और दिखाने के अलग होते है। वैसे ही भीतर से हम पवित्र है और बाहर से लिलामात्र करते है।
जिज्ञासु):जो तुम भीतर से सुद्ध होते तो तुम्हारे बाहर के काम भी सुद्घ होते । इसलिए तुम भीतर भी मैले ही हो ।
संप्रदाय वाले):हम चाहे जैसे हो परन्तु हमारे चेले तो अच्छे है।
जिज्ञासु):जैसे तुम गुरु हो ;वैसे ही तुम्हारे चेले भी होगे।
संप्रदाय वाले) : सब मनुष्य एक मत कभी नहीं हो सकते क्योंकि मनुष्यो क गुणकर्म े स्वभाव भिन्न भिन्न है।
जिज्ञासु):जो बाल्यावस्था में एक सी सीक्षा हो ,सत्य भाषण आदि धर्म का ग्रहण और सेवन हो और मिथ्या भाषण आदि अधर्म का सब मनुष्य परस्पर प्रेम पूर्वक त्याग करे तो एकमत और एक वैदिक धर्मी अवश्य हो जाए।और दो मत अर्थात धर्मात्मा और अधर्मात्मा सदा रहते हैं तो रहे।परन्तु धर्मात्मा अधिक होने से और अधर्मी के कम होने से संसार में सुख बढ़ता है और जब अधर्मी अधिक बढ़ता है तो सब लोगो को दुख होता है।जब सब मनुष्य एक सा सत्य उपदेश करे और मिथ्या मत की हानि करे तो लोगो को एक धर्म व मत में लाने में बिलंब न हो।
संप्रदाय वाले):आजकल कलियुग है ।सतयुग की बात मत चाहो।
जिज्ञासु):कलियुग नाम काल का है ।काल निष्क्रिय होने से कुछ धर्म के करने में साधक बाधक नहीं है,किन्तु तुम ही कलियुग की मूर्तियां बन रहे हो ।ये सब संग के गुण दोष है;स्वाभाविक नहीं ।इतना कह कर वह जिज्ञासु श्रेष्ठ आप्त विद्वान के पास गया ।उन से कहा कि महाराज !तुम ने मेरा उद्धार किया ,नहीं तो मैं भी किसी धूर्त पापी पाखंडी विधर्मी के जाल में फस कर नष्ट भ्रष्ट हो जाता।अब से मैं भी इन विधर्मी पाखंडियों और मजहबी लोगो का खंडन और सत्य सनातन वैदिक धर्म का मंडन किया करूंगा।
श्रेष्ठ विद्वान):यही सब मनुष्यो का काम है कि सब मनुष्यो को सत्य सनातन वैदिक धर्म और संसकृति का मंडन अवश्य करना चाहिए और असत्य खंडन पढ़ा सुना के सत्योपदेश से लोगों को उपकार पहुंचाना चाहिए ।
साभार व्हाट्सएप से 🙏
19/03/2019
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय!!!
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चन्द्र की जय!!!
योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज की जय!!!
वेद की ज्योति जलती रहे!!!
ओम् का झंडा ऊंचा रहे!!!